"औरत की है यही कहानी"
चुप रहो… चुप रहो… तुम्हें कुछ नहीं पता। जब-जब कुछ कहना चाहा, सबने कहा – चुप रहो, तुम लड़की हो, तुम्हें ज़्यादा बोलने का अधिकार नहीं है।मायके में बोलना चाहा तो परिवार ने कहा – चुप रहो, तुम्हें दूसरे के घर जाना है, लोग क्या कहेंगे। ससुराल में कुछ कहना चाहा तो पति ने कहा – चुप रहो, तुम औरत हो, तुम्हारा चुप रहना ही शोभा देता है।
जब अपने बच्चों के सामने कुछ कहना चाहा, तो बच्चों ने कहा – माँ, तुम चुप रहो, तुम्हें कुछ नहीं पता। उम्र ढल गई, बूढ़ी हो गई, तब कुछ कहना चाहा तो बहू-बेटों ने कहा – चुप रहो माँ, अब तुम्हारी उम्र कहने-सुनने की नहीं रही। तुम आराम करो और पूजा-पाठ करो।
इस "चुप रहो… चुप रहो…" के बोझ तले, दिल की बात दिल में ही दबाए, वह औरत चुपचाप इस दुनिया से रुख़सत हो गई।
इस "चुप रहो… चुप रहो…" के बोझ तले, दिल की बात दिल में ही दबाए, वह औरत चुपचाप इस दुनिया से रुख़सत हो गई।


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